पहला पड़ाव: सपनों की शुरुआत
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में रमेश नाम का एक लड़का रहता था। वह बहुत होशियार और मेहनती था, लेकिन उसका परिवार बहुत गरीब था। उसके पिता किसान थे, जो मुश्किल से घर का खर्च चला पाते थे। पढ़ाई के प्रति रमेश की गहरी रुचि थी, लेकिन उसके पास किताबें खरीदने के पैसे नहीं थे।
गाँव में ही सुरेश नाम का एक लड़का था, जो एक अमीर परिवार से था। उसके पिता गाँव के सबसे बड़े ज़मींदार थे। सुरेश के पास हर नई किताब होती थी, लेकिन वह पढ़ाई में ज्यादा रुचि नहीं रखता था।
दूसरा पड़ाव: दोस्ती और संघर्ष
एक दिन रमेश ने हिम्मत करके सुरेश से कहा, “सुरेश, क्या तुम मुझे अपनी पुरानी किताबें दे सकते हो? मेरे पास किताबें खरीदने के पैसे नहीं हैं, लेकिन मैं पढ़ाई करना चाहता हूँ।”
सुरेश दिल का बहुत अच्छा था। उसने तुरंत अपनी पुरानी किताबें रमेश को दे दीं और कहा, “जब भी तुम्हें और किताबों की ज़रूरत हो, मुझसे ले लेना। तुम खूब मन लगाकर पढ़ो।”
अब रमेश के पास पढ़ाई करने के लिए किताबें थीं। वह दिन-रात मेहनत करने लगा। गाँव के पेड़ के नीचे बैठकर, कभी मंदिर की सीढ़ियों पर, तो कभी स्कूल की खाली कक्षा में वह पढ़ाई करता। उसके गुरुजी भी उसकी लगन देखकर बहुत खुश थे।
तीसरा पड़ाव: मेहनत का फल
रमेश ने अच्छे अंकों से स्कूल की परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए शहर चला गया। वहाँ उसने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। हालाँकि, यह सफर आसान नहीं था। कभी-कभी उसे भूखा रहना पड़ता, कभी पैसों की तंगी होती, लेकिन उसने हार नहीं मानी।
सुरेश अब भी रमेश से बात करता था। जब भी रमेश को पैसे या किसी और मदद की ज़रूरत होती, सुरेश उसकी सहायता करता। उसने रमेश से कहा था, “तुम्हारी मेहनत ही तुम्हारी असली ताकत है। मुझे यकीन है कि तुम एक दिन बड़ा आदमी बनोगे।”
रमेश ने यूपीएससी की परीक्षा दी और पहली बार में ही पास कर ली। जब गाँव में यह खबर पहुँची, तो सब बहुत खुश हुए। उसके माता-पिता की आँखों में आँसू थे, और पूरे गाँव में मिठाइयाँ बाँटी गईं।
चौथा पड़ाव: कृतज्ञता का भाव
कुछ महीनों बाद रमेश की आईपीएस (IPS) अधिकारी के रूप में पहली पोस्टिंग हुई। जब वह पहली बार वर्दी पहनकर अपने गाँव पहुँचा, तो पूरा गाँव गर्व से झूम उठा। लोग उसे देखने के लिए उमड़ पड़े। लेकिन रमेश सीधा सुरेश के घर गया।
सुरेश उसे देखकर चौंक गया। रमेश ने झुककर उसके पैर छू लिए और कहा, “आज मैं जो कुछ भी हूँ, तुम्हारी मदद की वजह से हूँ। अगर तुमने मुझे किताबें न दी होतीं, तो शायद मैं यहाँ तक नहीं पहुँच पाता। तुम केवल मेरे दोस्त नहीं हो, मेरे गुरु भी हो।”
सुरेश की आँखें नम हो गईं। उसने रमेश को गले लगाकर कहा, “नहीं दोस्त, यह सब तुम्हारी मेहनत का नतीजा है। मैं सिर्फ एक जरिया था।”
अंतिम संदेश
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची दोस्ती और कठिन परिश्रम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। रमेश की तरह अगर हम भी अपने लक्ष्य पर डटे रहें और कभी हार न मानें, तो सफलता जरूर मिलेगी। और सुरेश की तरह अगर हम दूसरों की मदद करने का जज़्बा रखें, तो यह दुनिया और भी खूबसूरत बन सकती है।