गर्मी की तपती दोपहर थी। चिलचिलाती धूप में सड़कें सूनी पड़ी थीं। अमर अपने घर की बालकनी में बैठा था, जब उसकी नज़र अपने बचपन के दोस्त अमन पर पड़ी। अमन स्कूल से लौट रहा था, और उसके चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी।
अमर जानता था कि रमज़ान का महीना चल रहा है और अमन रोज़ा रख रहा है। सुबह से लेकर शाम तक बिना कुछ खाए-पिए रहना आसान नहीं होता, खासकर इस झुलसाने वाली गर्मी में। अमर नीचे उतरा और अमन के पास पहुंचा।
“कैसा लग रहा है भाई?” अमर ने मुस्कुराते हुए पूछा।
अमन ने हंसने की कोशिश की, लेकिन कमजोरी साफ झलक रही थी। “बस, ठीक ही है। लेकिन आज बहुत गर्मी है। थोड़ा मुश्किल हो रहा है।”
अमर को अपने दोस्त की हालत देखकर चिंता हुई। उसने सोचा कि कैसे वह अमन की मदद कर सकता है। फिर उसे एक बेहतरीन आइडिया आया।
इफ़्तार की तैयारी
अमर ने घर जाकर अपनी माँ से बात की। “माँ, आज मैं अमन के लिए कुछ खास करना चाहता हूँ।”
उसकी माँ ने प्यार से सिर पर हाथ फेरा और कहा, “बिलकुल बेटा! दोस्ती का असली मतलब ही यही होता है।”
अमर ने पूरे मन से अमन के लिए इफ़्तार तैयार किया। ठंडे शरबत से लेकर खजूर, फल, पकौड़े और समोसे—हर चीज़ रखी। जब सूरज डूबने को आया, तो अमर इफ़्तार का सामान लेकर अमन के घर पहुँचा।
अमन ने दरवाजा खोला तो हैरान रह गया। सामने अमर हाथ में ट्रे लिए खड़ा था। “ये क्या, अमर?”
“तू रोज़े से था, सोचा तेरे लिए कुछ अच्छा करूँ।” अमर ने मुस्कुराते हुए कहा।
अमन की आँखें खुशी से चमक उठीं। दोनों दोस्तों ने एक साथ इफ़्तार किया। अमन के परिवार ने अमर का दिल से धन्यवाद किया।
दोस्ती की सच्ची मिसाल
उस रात, अमन ने अमर से कहा, “तू जानता है अमर, इस रमज़ान का सबसे अच्छा लम्हा क्या था?”
“क्या?”
“तेरी यह दोस्ती, जो किसी भी धर्म से बढ़कर है।”
अमर मुस्कुरा दिया। सच ही तो था, दोस्ती में जात-पात नहीं होती, सिर्फ़ दिलों का प्यार होता है।