कोलकाता स्थित बोस इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर अनिर्बान भुनिया और उनकी टीम ने अल्ज़ाइमर रोग और अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों के इलाज के लिए नई और प्रभावी तकनीकों पर शोध किया है। उनका यह अध्ययन विशेष रूप से एमिलॉयड प्रोटीन पर केंद्रित है, जो इस बीमारी की मुख्य वजह माने जाते हैं।
एमिलॉयड प्रोटीन और अल्ज़ाइमर रोग
अल्ज़ाइमर रोग में एमिलॉयड प्रोटीन मस्तिष्क में जमा होकर प्लाक्स (plaques) बनाते हैं। ये प्लाक्स कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे स्मृति (याददाश्त) कमजोर होने लगती है और रोगी की मानसिक स्थिति बिगड़ती जाती है।
इलाज के लिए नई तकनीकें
प्रोफेसर भुनिया की टीम ने अल्ज़ाइमर के इलाज के लिए दो मुख्य रणनीतियां अपनाईं:
- रासायनिक रूप से संश्लेषित पेप्टाइड्स: इनका उद्देश्य एमिलॉयड बीटा प्रोटीन के जमाव को रोकना है।
- लसुनाद्य घृत (LG): एक प्राचीन आयुर्वेदिक दवा का उपयोग कर एमिलॉयड बीटा प्रोटीन के जमाव को कम करना।
लसुनाद्य घृत (LG) का महत्व
लसुनाद्य घृत आयुर्वेद में मानसिक रोगों के इलाज के लिए जानी जाती है। इस शोध में पाया गया कि इसके प्राकृतिक, गैर-विषैले तत्व एमिलॉयड प्रोटीन की संरचना को तोड़ने और ओलिगोमर्स बनने से रोकने में मदद करते हैं।
शोध के नतीजे
यह अध्ययन ‘बायोकैमिस्ट्री’ जर्नल में प्रकाशित हुआ। इसमें यह सामने आया कि रासायनिक पेप्टाइड्स और आयुर्वेदिक दवाओं का संयोजन एमिलॉयड प्रोटीन को रोकने में प्रभावी और सुरक्षित साबित हो सकता है।
अल्ज़ाइमर के लक्षण और असर
शुरुआती लक्षण:
- हाल की घटनाएं याद रखने में कठिनाई
- रोजमर्रा के कामों में परेशानी
- डिप्रेशन और चिड़चिड़ापन
बढ़ते लक्षण:
- परिवार और दोस्तों को पहचानने में असमर्थता
- स्वभाव में बदलाव
उपचार से जुड़ी उम्मीदें
शोधकर्ताओं का मानना है कि आयुर्वेदिक उपचार के साथ रासायनिक पेप्टाइड्स के इस्तेमाल से अल्ज़ाइमर और अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव हो सकता है। यह शोध न केवल रोगियों की जिंदगी बेहतर बना सकता है, बल्कि भविष्य में नई दवाओं का आधार भी बन सकता है।