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हरियाणा में मूंग की खेती भारतीय कृषि में अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह फसल प्रोटीन का अच्छा स्रोत होने के साथ-साथ अन्य पोषक तत्व भी प्रदान करती है। इसके अलावा, मूंग की फसल की कम लागत और शीघ्र कटाई की अवधि के कारण भी यह किसानों के बीच लोकप्रिय है। आधुनिक कृषि अनुसंधान और विकास के प्रयासों से ऐसे कई उन्नत किस्म विकसित किए गए हैं, जो हरियाणा की मिट्टी, जलवायु और सिंचाई व्यवस्था के अनुकूल हैं। अब हम इन पांच प्रमुख किस्मों का विवरण क्रमवार प्रस्तुत करते हैं।

1. MH 2‑15 (सट्ट्या)
यह किस्म 2008 में CCSHAU, हिसार द्वारा विकसित की गई थी। MH 2‑15 की उपज क्षमता 10 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पाई जाती है। खरिफ मौसम में इस किस्म के लिए आमतौर पर 8 से 9 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ का उपयोग किया जाता है। इसकी सबसे प्रमुख विशेषता मूंगबीन पीले मोजैक वायरस (MYMV) और Cercospora लीफ स्पॉट (CLS) के प्रति उच्च प्रतिरोध है। मध्यम अवधि होने के कारण यह किस्म फसल कटाई में संतुलित समय देती है और किसानों को नियमित उपज प्रदान करती है। किसानों ने इस किस्म को अपनाकर न केवल फसल की गुणवत्ता में सुधार देखा है, बल्कि कीट और रोगों से भी काफी सुरक्षा मिली है।

2. MH 421
यह किस्म 2014 में CCSHAU, हिसार द्वारा जारी की गई थी। MH 421 खरिफ के साथ-साथ गर्मी और वसंत ऋतु में भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। इसकी उपज क्षमता 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के बीच रहती है। खरिफ मौसम में इस किस्म के लिए भी 8 से 9 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ का मानक दर अपनाया जाता है। MH 421 की प्रमुख विशेषताओं में MYMV के प्रति प्रतिरोध, स्थिर उपज क्षमता और मध्यम अवधि का विकास शामिल है। यह किस्म उन क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है जहाँ गर्मी के मौसम में रोगों और कीटों का प्रकोप अधिक रहता है, जिससे किसान समय पर फसल कटाई कर सकें और आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकें।

3. MH 1142
हाल ही में, 2020 में CCSHAU, हिसार द्वारा MH 1142 किस्म विकसित की गई थी। इस किस्म की उपज क्षमता 11 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। खरिफ मौसम में इस किस्म के लिए भी 8 से 9 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ का उपयोग किया जाता है। MH 1142 की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी anthracnose (काला धब्बेदार रोग) और पाउडरी मील्ड के प्रति मध्यम प्रतिरोध है, साथ ही यह MYMV के खिलाफ भी सुरक्षा प्रदान करती है। इस किस्म का विकास किसानों को फसल कटाई में देरी न होने और उपज में निरंतरता लाने के उद्देश्य से किया गया है। किसानों ने MH 1142 के माध्यम से बेहतर फसल गुणवत्ता और समय पर कटाई का अनुभव किया है।

4. MH 318
MH 318 किस्म को 2015 में CCSHAU, हिसार द्वारा विकसित किया गया था। यह किस्म खरिफ मौसम में उच्च उपज क्षमता प्रदान करती है, जहाँ इसकी उपज क्षमता लगभग 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुँच जाती है। MH 318 के लिए भी 8 से 9 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ का प्रयोग किया जाता है। इस किस्म की सबसे उल्लेखनीय विशेषता इसकी अत्यधिक प्रतिरोधक क्षमता है, विशेषकर मूंगबीन पीले मोजैक वायरस के प्रति। जल्दी पकने वाली होने के कारण MH 318 किसानों को समय पर फसल कटाई का लाभ प्रदान करती है। इसकी उच्च उपज क्षमता और रोग प्रतिरोधक गुणों ने इसे हरियाणा के किसानों के बीच अत्यंत लोकप्रिय बना दिया है, जिससे उन्हें आर्थिक लाभ और जोखिम में कमी का अनुभव होता है।

5. ML 818
ML 818 किस्म 2007 में Punjab Agricultural University (PAU), लुधियाना द्वारा विकसित की गई थी। यह किस्म उत्तरी पश्चिमी मैदान क्षेत्र में अच्छी तरह से उगाई जाती है, जिसमें हरियाणा भी शामिल है। ML 818 की उपज क्षमता 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के बीच है। खरिफ मौसम में इस किस्म के लिए भी 8 से 9 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की दर मान्य है। ML 818 की प्रमुख विशेषताओं में इसकी मध्यम ऊँचाई, MYMV और CLS के प्रति मध्यम प्रतिरोध तथा anthracnose के खिलाफ कुछ हद तक सुरक्षा शामिल है। यह किस्म उन किसानों के लिए उपयुक्त है जो स्थिर और संतुलित फसल उत्पादन की इच्छा रखते हैं।

इन पाँचों किस्मों का चयन व्यापक क्षेत्रीय अनुसंधान, फील्ड परीक्षण और किसानों के अनुभव के आधार पर किया गया है। CCSHAU, हिसार और PAU, लुधियाना जैसे प्रमुख कृषि संस्थानों द्वारा विकसित ये किस्में हरियाणा की मिट्टी, जलवायु और सिंचाई व्यवस्था के अनुरूप हैं। किसानों को चाहिए कि वे फसल बोने से पहले अपने क्षेत्र की मिट्टी, जलवायु और स्थानीय रोगों की स्थिति का अध्ययन करें तथा उचित बीज दर, उर्वरक और सिंचाई व्यवस्था अपनाएं, ताकि इन उन्नत किस्मों से सर्वोत्तम उपज प्राप्त की जा सके।

खरिफ मौसम में सामान्यत: इन किस्मों के लिए 8 से 9 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज दर अपनाई जाती है। इसके साथ-साथ समय पर उर्वरक का प्रयोग, उचित सिंचाई और रोग नियंत्रण के आधुनिक तरीके भी फसल की उपज को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसानों द्वारा इन किस्मों का उपयोग करने से न केवल फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है, बल्कि उनकी आय में भी वृद्धि होती है। इसके फलस्वरूप, कृषि व्यवसाय में स्थिरता आती है और ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।

हरियाणा में मूंग की खेती का ऐतिहासिक महत्व रहा है, क्योंकि यह फसल घरेलू उपयोग के साथ-साथ रेशमी, दाल और अन्य खाद्य उत्पादों के निर्माण में भी उपयोगी है। इन उन्नत किस्मों के माध्यम से किसानों को बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता, संतुलित उपज, शीघ्र फसल कटाई और आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि इन किस्मों का सही ढंग से प्रयोग करके और आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाकर हरियाणा की मूंग की खेती में उल्लेखनीय सुधार किया जा सकता है।

इस लेख से स्पष्ट होता है कि MH 2‑15 (सट्ट्या), MH 421, MH 1142, MH 318 और ML 818 जैसी शीर्ष मूंग किस्में हरियाणा के किसानों के लिए वरदान साबित हो रही हैं। इन किस्मों का विकास कृषि वैज्ञानिकों की निरंतर मेहनत और अनुसंधान का परिणाम है, जिन्होंने फसल की गुणवत्ता, रोग प्रतिरोधक क्षमता और उपज में वृद्धि के लिए नए-नए प्रयोग किए हैं। CCSHAU, हिसार और PAU, लुधियाना जैसे संस्थानों द्वारा विकसित ये किस्में हरियाणा की कृषि व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव ला रही हैं।

अंततः, यह कहा जा सकता है कि इन उन्नत मूंग किस्मों के प्रयोग से हरियाणा के किसान अपनी फसल की गुणवत्ता और उपज में सुधार कर सकते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। किसानों को चाहिए कि वे स्थानीय कृषि विशेषज्ञों और कृषि विश्वविद्यालयों से परामर्श लेकर इन किस्मों का चयन करें। उचित कृषि प्रबंधन, सही बीज दर, उर्वरक, सिंचाई और रोग नियंत्रण के आधुनिक तरीकों के साथ इन किस्मों का प्रयोग करके हरियाणा में मूंग की खेती में एक नई क्रांति लाई जा सकती है।

इस प्रकार, MH 2‑15 (सट्ट्या), MH 421, MH 1142, MH 318 और ML 818 जैसी शीर्ष किस्में हरियाणा के किसानों को न केवल आर्थिक लाभ प्रदान करती हैं, बल्कि कृषि उत्पादन में स्थिरता और गुणवत्ता भी सुनिश्चित करती हैं। इन किस्मों के माध्यम से किसानों को बेहतर फसल कटाई, रोगों से सुरक्षा और समय पर उपज प्राप्त होती है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन आता है। सही निर्णय और आधुनिक कृषि तकनीकों के समन्वय से हरियाणा में मूंग की खेती भविष्य में और भी अधिक सफल होगी, और किसानों की आय में निरंतर वृद्धि संभव होगी।

By Wasim Ilyas Akram

दोस्तों, मैं एक एग्रीकल्चर ग्रेजुएट हूं और पिछले लगभग 5 सालों से मैं किसान समुदाय के लिए काम कर रहा हूं। मैंने Centre Of Excellence For Vegetables, Gharaunda में नर्सरी एक्सपर्ट के पद पे कार्य किया है और पौध उत्पादन में करीब 5 साल दिए हैं। इसके अलावा हमारा एक YouTube चैनल AAS TV के नाम से है, जिसपे हम लगातार videos की शक्ल में खेती से जुड़ी उन्नत जानकारी साझा करते हैं। आप भी हमारे साथ इस मुहिम में आज़ ही जुड़िए।

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