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दोस्तों, कोकोपीट soil less मीडिया की रीड की हड्डी है क्यों इस मीडिया में मुख्य रूप से कोकोपीट ही होता है। और कुछ किसान भाई तो सिर्फ कोकोपीट में ही पौध तैयार करते हैं।

कुछ किसान भाई ऐसे भी होते हैं, जो कोकोपीट के साथ वर्मीकंपोस्ट मिक्स करते हैं। पर अगर आपको बेस्ट रिजल्ट्स चाहियें तो कोकोपीट के साथ, परलाइट और वर्मिकुलाईट भी ज़रूर मिलाएं अपने बजट के अनुसार। कोकोपीट के अपने कई फायदे हैं जैसे कि यह मीडिया को पोरस बनता है। जिससे पौधों की जड़ें खास तौर से पौध की जड़ें उसमें आसानी से चली जाती हैं। इसमें पौधों की जड़ें उलझ कर टूटती नहीं है।

फिर जब पौध तैयार हो जाती है और ट्रे को हम एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाते हैं। तो भी इसे मैनेज करना काफी आसान होता है। कोकोपीट के अंदर पानी को सोखने की गजब की खासियत होती है। यह पोषक तत्वों को भी जड़ों में काफी समय तक रोक कर रखता है।

क्योंकि कोकोपीट मीडिया के अंदर फाइबर्स यानी कि रेशे होते हैं। जिसकी वजह से यह काफी ज्यादा हल्का होता है। और यही वजह है कि हम इसका इस्तेमाल टेरेस गार्डनिंग में भी कर सकते हैं। हम इसे गमले में भरकर पौधे लगा सकते हैं। या फिर पॉली बैग्स में भी भरकर इसमें आसानी से पौधे लगा सकते हैं।

जब हम मीडिया तैयार करते हैं पौध लगाने के लिए तो कोकोपीट के साथ परलाइट और vermiculite भी ऐड करते हैं। पर लाइट और vermiculite के अपने अलग ही फायदे हैं।

अगर हम परलाइट की बात करें तो यह सफेद रंग का दानेदार पदार्थ होता है। दानेदार होने की वजह से यह पौध की जड़ों में हवा का फ्लो आसान करता है। इसके अलावा यह पीएच वैल्यू को भी रोक कर रखता है। यानी की पीएच को बहुत ज्यादा घटने या बढ़ने नहीं देता। और पीएच वैल्यू से पौधों पर काफी ज्यादा प्रभाव पड़ता है।

अगर बात करें वर्मीकुलाइट की तो यह बेहद खास एक कंपोनेंट है soil less मीडिया का। इसके अंदर गजब की cation exchange capacity (CEC) होती है।

कैसे बनती हैं कोकोपीट ब्रिक्स?

दोस्तों, कोकोपीट नारियल के हस्क (husk) से तैयार किया जाता है, और नारियल हमारे देश के साउथ वाले हिस्से में समुंदर के आस पास ही उगते हैं।

और समुंदर के पानी के अंदर नमक की मात्रा काफ़ी पायी जाती है, इसलिए ही हमारे cocopeat bricks के साथ नमक भी आ जाता है। और इसी को बाद में हाई EC Cocopeat कहा जाता है।

अगर EC वैल्यू ज्यादा हुई तो, इसे बार बार और तब तक धुलते रहना पड़ेगा जब तक कि ये 1000 micro Siemens के नीचे ना आ जाए।

How to check EC with EC metre?

EC कैसे चेक करें, ये हमने इस विडिओ में काफी डिटेल्स में समझाया हुआ है। इसके अलावा भी आप हमारी और वीडियो देख सकते हैं।

कोकोपीट खरीदते समय किन बातों को रखें ध्यान?

  1. इसे किसी ऐसे सोर्स से खरीदें जो पहले से ही इस क्षेत्र में काम कर रहा हो।
  2. ब्रिक खुली ना हो कर पॉलीथीन के भीतर या लेमिनेटेड हो।
  3. कोकोपीट ब्रिक्स कॉम्पैक्ट फॉर्म में मिलती हैं, जिससे इसका वजन बढ़ाने के लिए इसके अंदर पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े डाल दिए जाते हैं। तो सैंपल चेक करते समय आप इसे एक बार भिगो कर ज़रूर देख लें।
  4. दुकान वाला आपको हमेशा इसे low EC ही बताएगा, पर आप इसका एक पीस (piece), डिस्टिल वाटर (distilled water) में भिगो कर इसका EC चेक कर लें।
  5. कोकोपीट ब्रिक के अंदर नारियल husk पूरी तरह से प्रोसेस फॉर्म में होना चाहिए। कई बार इसमें नारियल का पूरा टुकड़ा भी निकलता है।
  6. कोकोपीट रियूज्ड (reused) नहीं होना चाहिए। और इसका रंग हल्का भूरा हो, ना की डार्क ब्राउन।
  7. इसके अंदर बहुत ज्यादा रैसे (फाइबर्स) ना हों।
  8. इसके अंदर पहले से ही मॉइश्चर (नामी) ना हो।
  9. भिगोने पर आसानी से लूज हो जाना चाहिए।
  10. इसकी pH वैल्यू 6.5 से लेकर 8.5 के बीच में होनी चाहिए।

दोस्तों ,जैसा कि आप अब तक जान चुके होंगे कि कोकोपीट नारियल के husk से बनता है। और नारियल की खेती उत्तर भारत में होती ही नहीं है। इसीलिए इसे साउथ इंडिया से मंगाया जाता है। पर कई बार इसे इंपोर्ट करते समय लापरवाही बरती जाती है।

और रास्ते में यह बारिश के संपर्क में आ जाता है जिसकी वजह से कोकोपीट के अंदर नमी चली जाती है। कोकोपीट की ब्रिक्स में जैसे ही नमी आती है तो यह फूलना शुरू हो जाती है। और इससे इनकी गुणवत्ता पर काफी ज्यादा असर पड़ता है। कई बार तो इनमें इसी वजह से फंगल कॉन्टेमिनेशन भी आ जाता है।

इसीलिए कोकोपीट को जब भी ट्रांसपोर्ट करें तो ब्रिक्स के ऊपर लेमिनेशन करा कर ही ट्रांसपोर्ट करें। इससे न तो बारिश का असर उनके ऊपर होता है और ना ही हवा में मौजूद नमी इसके ऊपर कोई असर डालती है। कोकोपीट नमी या पानी के कांटेक्ट में आने के कुछ समय बाद सड़ना शुरू हो जाता है।

तो दोस्तों, ये वो तमाम बातें थी जो आपको कोकोपीट ब्रिक्स खरीदते समय अपने जेहन में रखनी हैं। और जब आप कोको पीट की डील सप्लायर से करें तो यह सारी बातें यह सारी कंडीशंस आप अपने सप्लायर को पहले ही बता दें।

की आपको को low EC वाला कोकोपीट ही चाहिए। और कोकोपीट में फाइबर्स यानी की रेशे है अच्छी तरह से मौजूद हों। कोकोपीट खुला नहीं होना चाहिए बल्कि इसके ऊपर एक लेमिनेशन की सीट होनी चाहिए। इसके भीतर पत्थर के टुकड़े नहीं होने चाहिए। और यह सभी तरह के फंगल कॉन्टेमिनेशन से फ्री होना चाहिए। अगर आप इस तरह के कोकोपीट का इस्तेमाल पौध उत्पादन के कार्य में करेंगे तो आपको निश्चित रूप से बेहतर परिणाम ही मिलेंगे।

कोकोपीट को इस्तेमाल करने से पहले आपको किस तरह से भिगोना है। और किस तरह से इसका मीडिया तैयार करना है। हमने अपने यूट्यूब चैनल पर वीडियो बनाकर समझाया हुआ है। आप हमारे चैनल पर जाकर वीडियो को देख सकते हैं। और पौध उत्पादन का काम बढ़िया आसानी से अंजाम दे सकते हैं। यह वीडियो न सिर्फ आपकी मदद बहुत उत्पादन के काम में करेंगी। बल्कि खेती बाड़ी से जुड़ी और भी जानकारी आपको एक ही प्लेटफार्म पर मिल जाएगी।

अगर आप ऐसा करते हैं तो, आपको अच्छी गुणवत्ता वाला कोकोपीट ही मिलेगा। और आपकी पौध भी बेहतर तैयार होगी।

#CocopeatMedia #SoillessMedia #HiTechNursery #VegetableFarming #CEV_GHARAUNDA

By Wasim Ilyas Akram

दोस्तों, मैं एक एग्रीकल्चर ग्रेजुएट हूं और पिछले लगभग 5 सालों से मैं किसान समुदाय के लिए काम कर रहा हूं। मैंने Centre Of Excellence For Vegetables, Gharaunda में नर्सरी एक्सपर्ट के पद पे कार्य किया है और पौध उत्पादन में करीब 5 साल दिए हैं। इसके अलावा हमारा एक YouTube चैनल AAS TV के नाम से है, जिसपे हम लगातार videos की शक्ल में खेती से जुड़ी उन्नत जानकारी साझा करते हैं। आप भी हमारे साथ इस मुहिम में आज़ ही जुड़िए।

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