पुणे वन विभाग का ‘मिजो-कार्निवोरस’ संरक्षण प्रोजेक्ट
पुणे वन विभाग ने एक महत्वपूर्ण वन्यजीव संरक्षण परियोजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य पांच मुख्य जंगली जानवरों – भेड़िया, गीदड़, लोमड़ी, सिवेट (गंधबिलाव) और लकड़बग्घा – का संरक्षण करना है। इन प्रजातियों को मिलाकर “मिजो-कार्निवोरस” नाम दिया गया है। यह प्रोजेक्ट अभी मंजूरी के लिए मुख्य वन्यजीव वार्डन के पास समीक्षा में है। महाराष्ट्र के पुणे जिले में यह परियोजना शुरू होने से वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा और इन जानवरों के प्राकृतिक आवास यानी घास के मैदानों का भी संरक्षण हो सकेगा।
मिजो-कार्निवोरस क्या है?
मिजो-कार्निवोरस शब्द का विशेष अर्थ है उन मांसाहारी जीवों का समूह जो घास के मैदानों में पाए जाते हैं। ये जानवर पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनके संरक्षण से न केवल इनकी संख्या बढ़ेगी, बल्कि अन्य जीवों और पौधों के संरक्षण में भी मदद मिलेगी। पुणे वन विभाग का यह प्रोजेक्ट इसीलिए विशेष है क्योंकि यह पहली बार है जब किसी राज्य ने घास के मैदानों में रहने वाले मांसाहारी जीवों के संरक्षण पर इतना जोर दिया है।
परियोजना का उद्देश्य
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य है:
- पाँच मांसाहारी जीवों का संरक्षण:
- भेड़िया, गीदड़, लोमड़ी, गंधबिलाव, और लकड़बग्घा को मुख्य रूप से सुरक्षित रखना।
- घास के मैदानों का संरक्षण:
- इन जानवरों के आवास यानी घास के मैदानों का संरक्षण, जो मानव गतिविधियों के कारण तेजी से घट रहे हैं।
- इको-टूरिज्म का विकास:
- पर्यटकों के लिए घास के मैदान सफारी के माध्यम से पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाना।
- स्थानीय रोजगार का सृजन:
- इस परियोजना से स्थानीय लोगों को गाइड और अन्य रूपों में रोजगार मिलेगा।
मिजो-कार्निवोरस में शामिल जानवरों की जानकारी
जानवर | विवरण | विशेषता |
---|---|---|
भेड़िया | बड़े समूह में रहने वाला मांसाहारी जीव | पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में सहायक |
गीदड़ | छोटे आकार का मांसाहारी जीव | साफ-सफाई में मददगार |
लोमड़ी | अकेले रहने वाला चालाक शिकारी | छोटे कीट और जानवरों का शिकार करता है |
गंधबिलाव | छिपकर रहने वाला रात्रिचर जीव | सुगंधित पदार्थों के लिए जाना जाता है |
लकड़बग्घा | समूह में रहने वाला शिकारी | मरे हुए जानवरों को खाकर पर्यावरण को साफ रखता है |
घास के मैदानों का महत्व
घास के मैदान न केवल इन मांसाहारी जीवों के आवास हैं, बल्कि वे अनेक पौधों, पक्षियों और शाकाहारी जीवों के लिए भी जरूरी हैं। घास के मैदान में पाए जाने वाले प्रमुख जीवों में चिंकारा, कृष्ण मृग और विभिन्न प्रकार के पक्षी शामिल हैं। मगर शहरीकरण और खेती के विस्तार के कारण इन मैदानों का क्षेत्रफल तेजी से घट रहा है।
घास के मैदानों का संरक्षण एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, और महाराष्ट्र वन विभाग ने पुणे जिले के बारामती और इंदापुर रेंज में “घास के मैदान सफारी” के माध्यम से इस दिशा में कदम उठाया है।
इको-टूरिज्म के लाभ
यह सफारी न केवल वन्यजीवों के संरक्षण में मदद करती है, बल्कि पर्यटकों को वन्यजीवन के बारे में जागरूक भी करती है। इस सफारी का टिकट मूल्य लगभग 2000 रुपये है और यह स्थानीय वन्यजीवों को बिना नुकसान पहुंचाए उनकी जीवनशैली को देखने का अवसर देती है। सफारी से होने वाली आय का कुछ हिस्सा स्थानीय समुदाय को भी दिया जाएगा, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।
पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव
इस परियोजना से न केवल इन जीवों का संरक्षण होगा बल्कि अन्य पर्यावरणीय लाभ भी होंगे:
- प्राकृतिक संतुलन: ये जानवर छोटे कीटों और जानवरों की संख्या को नियंत्रित कर पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखते हैं।
- सफाई में योगदान: गीदड़ और लकड़बग्घा जैसे जानवर मृत जीवों को खाकर प्राकृतिक सफाई में योगदान करते हैं।
- स्थानीय जैव विविधता में वृद्धि: इस परियोजना से अन्य जीवों और वनस्पतियों की विविधता को भी बढ़ावा मिलेगा।
सरकार का प्रयास और भविष्य की योजना
यह पहल महाराष्ट्र वन विभाग के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो राज्य में पहली बार घास के मैदानों और उनमें पाए जाने वाले मांसाहारी जीवों पर केंद्रित है। भविष्य में, इस तरह की और सफारी ट्रेल्स शुरू की जा सकती हैं, जिससे पर्यटकों के लिए और भी विकल्प उपलब्ध होंगे।
सारणी:
क्षेत्र | सफारी का नाम | दूरी |
---|---|---|
शिरसुपहल | घास के मैदान सफारी | 40 किमी |
कदबनवाड़ी | इको-टूरिज्म सफारी | 30 किमी |
निष्कर्ष
पुणे वन विभाग का मिजो-कार्निवोरस प्रोजेक्ट न केवल वन्यजीवों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि इससे पर्यावरण की सुरक्षा, स्थानीय रोजगार और इको-टूरिज्म का भी विकास होगा। यह परियोजना एक नई शुरुआत है, जो जंगलों के अलावा घास के मैदानों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करती है, और यही इसे खास बनाती है।
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