दोस्तों, फसलों में कई बार बढ़ती हाईट भी परेशानी का सबब बन जाती है। खासतौर से रबी सीजन में गेंहू की हाईट और इससे फसल के गिरने का खतरा होता है। और जिन इलाकों में बे मौसमी बारिश होती हैं वहां पर फसल के गिरने का खतरा और ज्यादा होता है।
और अगर वक्त रहते इसका नियंत्रण न किया जाए तो इससे हमारी फसलों में काफी ज्यादा नुकसान देखने को मिलता है। और कई बार ऐसा भी देखने को मिला है कि किसान की फसल 100 फीसदी तक बर्बाद हो गई है।
इससे बचने के लिए हमें प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर्स की ज़रूरत होती है। और आज के इस ब्लॉग हम इसी प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर्स को समझने की कोशिश करते हैं।
What Are Plant Growth Regulators (PGR’s)?
प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर्स ऐसे कैमिकल्स (natural or synthetic) होते हैं, जो इस्तेमाल करने के बाद पौधों की ग्रोथ और डेवलपमेंट को हमारे हिसाब से modify करते हैं।
इनमें से कुछ तो ऐसे केमिकल्स होते हैं जो पौधों की हाइट को समय से पहले बढ़ाने में मदद करते हैं। और कुछ केमिकल्स ऐसे होते हैं जो पौधों की वेजिटेटिव हाईट (vegetative height) को रोक देते हैं।
और ऐसा करके हम अपनी फसलों में होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम कर सकते हैं। अगर पौधों की हाइट नियंत्रण में रहेगी तो फसल की गिरने के चांस बहुत ज्यादा कम हो जाएंगे। और इससे किसान का नुकसान भी काफी ज्यादा कम हो जाएगा।
PGR पौधों के अंदर हार्मोनल ऐक्टिविटीज को बदल कर पौधों के बायोलॉजिकल प्रोसेस में बदलाव करके ऐसा करते हैं। और अगर ऐसा कुदरती तरीके से होता है तो इन्हें phytohormones (फाइटोहार्मोन्स) कहा जाता है।
कैसे काम करते हैं Phytohormones?
इनको प्लांट हार्मोस भी कहा जाता है। यह केमिकल मैसेंजर होते हैं जो प्लांट की ग्रोथ को रेगुलेट करते हैं। और पौधों की बाकी प्रक्रियाओं को भी नियंत्रित करते हैं।
यह एक तरह के ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स होते हैं जो पौधों में बहुत थोड़ी मात्रा में प्रोड्यूस होते हैं। पर इनका काम बहुत बड़ा होता है। यह पौधों में ग्रोथ और डेवलपमेंट को तो नियंत्रित करते हैं। साथ ही साथ एंब्रायोजेनेसिस (embryogenesis) को भी रेगुलेट करते हैं।
पौधों में ऑर्गन साइज को मेंटेन करते हैं और pathogens के खिलाफ डिफेंस पैदा करते हैं। पौधों को मौसमी स्ट्रेस से बचाते हैं और रिप्रोडक्टिव डेवलपमेंट (reproductive development) को भी बरकरार रखते हैं।
ये मुख्य रूप से 2 तरह के होते हैं:
- Plant Growth Promoters: ये ऐसे PGRs होते हैं जो पौधों की ग्रोथ और डेवलपमेंट को बूस्ट करते हैं, जैसे: Auxins, Gibberellins, एंड Cytokinins.
- Plant Growth Inhibitors: ये ऐसे PGRs होते हैं जो पौधों की ग्रोथ और डेवलपमेंट को धीमा करते हैं या बिलकुल रोक देते हैं, जैसे- Abscisic Acid and Ethylene.
अगर प्लांट ग्रोथ प्रमोटर्स की ओर डिटेल में बात करें तो यह पौधों में जरूरी केमिकल सब्सटेंस होते हैं जो पौधों की ग्रोथ और डेवलपमेंट के लिए जरूरी होते हैं। यह पौधों में सेल डिविजन या सेल एलॉन्गेशन करके पौधों की ग्रोथ को बढ़ाते हैं। और उनकी खास बात यह होती है कि यह पौधों के कुदरती फिजियोलॉजिकल एक्शंस को डिस्टर्ब नहीं करते।
अगर बात करें प्लांट ग्रोथ इन्हिबिटर्स (inhibitors) की तो ऐसे केमिकल्स होते हैं जो पौधों की ग्रोथ को रोककर डोरमेंसी को प्रमोट करते हैं। इसके अलावा प्लांट ग्रोथ इन्हिबिटर्स के कुछ और कार्य होते हैं जैसे:
- Induce dormancy
- Prevent seed from germination
- Abscission of leaves, fruits and flowers
- Close stomata to close.
इन केमिकल्स के अलावा भी कुछ एनवायरमेंटल फैक्टर्स ऐसे होते हैं जो पौधों की ग्रोथ को रेगुलेट करते हैं।
जैसे कि सूरज की रोशनी। अगर सूरज की रोशनी पौधों को लगातार मिलती रहे तो उनकी ग्रोथ लगातार होती रहती है। और अगर सूरज की रोशनी कभी कम हो जाए या लंबे समय तक बादल छाए रहे तो पौधों की ग्रोथ पर काफी असर पड़ता है। और कई बार तो सूरज की रोशनी की तलाश में पौधों की जो हाइट है वह lenky होनी शुरू हो जाती है।
पौधों की ग्रोथ में रोल प्ले करने वाला दूसरा इंर्पोटेंट फैक्टर है तापमान। तापमान का असर पौधों पर काफी ज्यादा होता है क्योंकि गर्मियों के दिनों में पौधों की ग्रोथ काफी तेज गति से होती है और सर्दियों के दिनों में पौधों की ग्रोथ रुक सी जाती है। और इसका उदाहरण हमें दिखता है जब हम खीरे की पौध तैयार करते हैं।
खीरे की पौध गर्मियों के दिनों में मात्र 10 से 15 दिन में तैयार हो जाती है। पर सर्दियों के दिनों में यही पौध 20 से 25 दोनों का समय लेती है।
अगला जरूरी फैक्टर है दोस्तों पानी। अगर हमारे पौधों को लगातार और सही समय पर पानी मिलता रहेगा तो इनकी ग्रोथ लगातार होती रहती है। पर कभी अगर पौधों को पानी की कमी हो जाए तो इससे पौधों पर स्ट्रेस आना शुरू हो जाता है।
इसके अलावा दोस्तों रिलेटिव ह्यूमिडिटी यानी आद्रता का भी पौधों की ग्रोथ पर काफी असर होता है। अगर पौधों के आसपास आद्रता कम है तो यह मिट्टी से ज्यादा पानी लेना शुरू कर देते हैं और उनकी ग्रोथ बढ़ाने शुरू हो जाती है। पर जब कभी आद्रता बढ़ जाती है तो पौधे कम पानी vaporise करते हैं और उनकी ग्रोथ रुक जाती है।
इसके अलावा एक और फैक्टर है दोस्तों न्यूट्रिशन। पौधों को अगर उनकी खुराक सही समय पर मिलेगी तो उनके ग्रोथ भी अच्छे से होगी। पर अगर उन्हें उनकी खुराक समय पर नहीं मिलेगी तुझे पौधों की ग्रोथ रुक सी जाती है।
इनका इस्तेमाल एग्रीकल्चर और हॉर्टिकल्चर फसलों में कई purposes के लिए किया जाता है:
- फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए;
- पौधों के shape और size को बेहतर करने के लिए;
- अनियमित फल के झड़ने को रोकने के लिए;
- Early flowering को promote करने के लिए।
Lihocin भी एक ऐसा ही PGR है।
Lihocin इसी श्रेणी का एक बेहतरीन PGR है जिसे पौधों में मनचाही ग्रोथ और डायरेक्शन देने के लिए निम्न फसलों में इस्तेमाल किया जाता है।
- कपास
- गेंहू
- आलू
- बैंगन और
- अंगूर।
कौनसा टैक्निकल होता है Lihocin में?
इसके अंदर Chlormequat Chloride (CCC) 50% SL के रूप में होता है।
गेंहू में कैसे करते हैं इस्तेमाल?
गेंहू में आप इसे 2 बार इस्तेमाल करके अपनी फसल की अधिक हाईट को कंट्रोल कर सकते हैं।
- पहला स्प्रे आपको ज्वाइंटिंग स्टेज (45 से 50 दिन) पर करना है, 250 ml प्रति एकड़ की दर से।
- दूसरा स्प्रे आपको फ्लैग लीफ इनिएशिएशन स्टेज (70 से 75 दिन) पर, 250 ml प्रति एकड़ के हिसाब से ही करना है।