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Introduction:

Mewat, हरियाणा राज्य का एक ऐसा क्षेत्र जो कई वजह से चर्चाओं में रहा है। अभी इस ज़िले का नाम नूह (Nuh) है, पर कुछ समय पहले तक इसका नाम मेवात (Mewat) था।

मेवात, कोई एक शहर या कस्बा ना हो कर एक पूरे इलाके का नाम है जो 3 राज्यों में फैला हुआ है। इसका ज्यादातर हिस्सा राजस्थान में पड़ता है। इसके बाद इसका दूसरा बड़ा हिस्सा हरियाणा में है। और इसका कुछ हिस्सा उत्तर प्रदेश में लगता है।

अक्सर जो इलाक़े शरहदों के आस पास होते हैं वहां crime ज्यादा देखने को मिलता है। और यही चीज़ मेवात से भी जुड़ी हुई है। पर आज हम इस क्राइम स्टोरी पर बात नहीं करेंगे बल्कि मेवात में क्या है खेती बाड़ी का हाल उस पर बात करेंगे।

कैसी है मेवात की Topography?

जब हम सोहना की तरफ से मेवात में entry करते हैं तो सिर्फ यहां के कुछ गांवों की ज़मीन अच्छी है। और ये खेती के नजरिए से उपजाऊ भी है। इसमें बालू की मात्रा ज्यादा है। जिससे यहां सब्जियां आसानी से लगाई जा सकती हैं। और इस जमीन को यहां की local बोली “मेवाती” में “भुडेली” मिट्टी भी कहा जाता है।

फिर जैसे ही हम दिल्ली-अलवर मार्ग (NH 248) पर south की तरफ आगे बढ़ते हैं तो हमारे दाईं तरफ खूूबसूरत Aravali Hills का नज़ारा पड़ता है। और दाईं तरफ की ज़मीन भी खेती के लिहाज से बेहतर है।

पर बाएं तरफ की ज़मीन फिर से चिकनी, salty और खेती बाड़ी के लिहाज से unproductive दिखती है। और Nuh आते आते इसकी हालत और खराब हो जाती है।

Nuh बायपास से एक सड़क दाईं तरफ Aravali Hills को चीरते हुए Taoru (तावडू) चली जाती है। और यहां “नूह घाटी” के जरिए आपको कुदरत की कारीगरी का अहसास होगा। और फिर से खेती के लिहाज से ये ज़मीन बेहतर है।

Nuh बायपास से बायें तरफ सड़क, Uttawar होते हुए Hodal चली जाती है। और इस तरफ की ज़मीन भी खेती के लिए अच्छी नहीं है। इसके जैसे ही Firojpur Jhirka की तरफ बढ़ते हैं तो जमीन खेती के लिए कुछ ठीक होती चली जाती है।

सिंचाई के पानी की है भारी क़िल्लत।

मेवात, हरियाणा का एक ऐसा क्षेत्र है जहां फसलों के लिए सिंचाई योग्य पानी की भरी कमी है। जिससे यहां की जमीन जो पहले से ही कम उपजाऊ है वो और काम पैदावार देती है। पूरे नूह जिले में कहीं भी ऐसा क्षेत्र नहीं जहां खेती के लिए पानी पर्याप्त मात्रा में हो। कहीं कहीं से छोटे मोटे नहर या नाले निकलते हैं और उनको भी शहरों के पढ़े लिखे “सभ्य” लोगों ने कीचड़ का दलदल बना दिया।

Gurugram, Faridabad और Ballabhgarh से हो कर गुजरने वाले नालों में फैक्ट्रियों से निकलने वाली गंदगी और जहरीले केमिकल्स ने यहां की जमीन को और ज्यादा खराब कर दिया है। और समय के साथ ये हालत ज्यादा बद से बद्तर होती जायेगी।

इन नहर और नालों से जो केमिकल्स निकलते हैं वो उनसे जो खेती सिंचित होते हैं, खतरा है की इससे कुछ लाईलाज बीमारियां लोगों को हो जाएं।

बारिश है एक मात्र सहारा, पर ये भी प्रयाप्त नहीं।

जहां लोगों की उम्मीद इंसान से नहीं होती वहां इस श्रृष्टि को रचने वाले से लोगों की उम्मीद बंधी होती है। और जब सिंचाई के विकल्प खत्म हो जाएं तो उम्मीद बारिश से होती है। पर मेवात क्षेत्र में annual average rainfall मात्रा 440 mm है। जो हरियाणा के बाक़ी जिलों में इससे कहीं ज्यादा है।

बदलते climate की वजह से ये बारिश भी बेवफा और बेमौसमी हो गई। और तब ज्यादा होती है जब इसकी ज़रूरत नहीं होती। इससे किसान को उल्टा नुकसान उठाना पड़ता है।

“कोटला की झील” हो सकती थी एक राहत, पर इस पर सरकार की ज्यादा नजर नहीं।

नूह से थोड़ा आगे और आकेड़ा गांव के पास अरावली पर्वतमाला के दामन में सैंकड़ों एकड़ में फैली एक झील है। जिसे “Kotla Lake” के नाम से जाना जाता है।

इसमें मानसून के दौरान पहाड़ों का इतना पानी इकट्ठा हो जाता है कि अगर इस पानी को ठीक से manage किया जाए तो ये अकेली झील मेवात क्षेत्र में खेती के लिए पानी की समस्या को हल कर सकती है। पर यहां के leaders ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। और यहां या तो सिर्फ लोग मछली पकड़ने का काम करते हैं। या आए दिनों इसमें डूब कर मरते हैं।

KOTKA LAKE

क्या हैं मेवात क्षेत्र की मुख्य फसलें?

अगर रबी (Rabi )सीजन की बात करें तो यहां ज्यादातर हिस्से में गेंहू की अगेती किस्में लगती हैं। और इसकी बुवाई बारिश को देखते हुए अक्टूबर के मध्य से शुरू हो जाती है।

जिन इलाकों में जमीन का पानी खारा है और कोई नहर या नाला नहीं है वहां रबी में सरसों (mustard) काफी लगाई जाती है।

और खरीफ़ सीजन में यहां ज्यादातर हिस्सों में ज्वार और बाजरा लगाया जाता है। जिस क्षेत्र में नहर या नाला है और बारिश का रुझान भी ठीक है तो, ऐसे कुछ इलाकों में धान भी लगाए जाते हैं।

बीते कुछ सालों से cotton यानी कपास का क्षेत्र भी बढ़ा है जिसमें Bt cotton लगाई जाती है।

मधु मक्खी पालन (Bee Keeping) के लिए मेवात क्षेत्र की सरसों है उपयुक्त।

मेवात क्षेत्र में pesticides यानी खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले chemicals का चलन उतना नहीं है जितना हरियाणा या देश के बाकी हिस्सों में। और मधु मक्खियों में कुदरत ने ये सलाहियत डाली है कि वो उस फूल पर रस लेने नहीं जाती जिस पर कोई chemical या दवा का spray किया गया हो।

BEE KEEPING

इसीलिए सोहना से फिरोजपुर झिरका तक अरावली पर्वतमाला के साथ साथ लगी सरसों मधु मक्खी पालन के लिहाज से देश भर में उपयुक्त मानी जाती है। और सर्दियों में यहां आमतौर पर उत्तर भारत के मधु मक्खी पालक यहां अपनी मक्खियों को लेकर आ जाते हैं।

बागवानी (Horticulture) में हैं अवसर, पर विभाग के अधिकारियों को देना पड़ेगा ध्यान।

जहां की जमीन अच्छी ना हो, और सिंचाई के साधन भी प्रयाप्त ना हों। वहां संरक्षित खेती (protected cultivation) एक अच्छा विकल्प बन जाता है। और मेवात के कुछ हिस्सों, जैसे: मेवली, मांडी खेड़ा, हसनपुर और तावडू में कुछ किसान इस तरह की खेती करके अच्छी खासी इनकम कर रहे हैं। नेट हाउस और पोली हाउस लगा कर ये खेती की जाती है और इसमें बिना बीज वाले खीरे और रंगीन शिमला मिर्च लगाई जाती है।

👉Also Read:What Are Seedless Cucumbers? How They Are Different From Normal Cucumbers? (हिंदी)

इनके बाजार में काफी अच्छे दाम मिलते हैं। पर ये खेती करने के लिए आपके पास तकनीकी जानकारी और विभाग का साथ होना बेहद ज़रूरी है। क्योंकि इस खेती के inputs काफ़ी ज्यादा मंहगे होते हैं।

हालांकि, सरकार की तरफ इसपे काफी ज्यादा subsidies हैं। पर ये sabsidy सही उम्मीदवार तक पहुंचे इसके लिए विभाग के अधिकारियों का ईमानदार और इस प्रक्रिया का पारदर्शी होना बेहद ज़रूरी है।

CROPPING PATTERN IN MEWAT

Conclusion

इस पूरे ब्लॉग से हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि मेवात इलाके में ना तो जमीन उतनी उपजाऊ है, और ना ही सिंचाई के साधन प्रयाप्त हैं कि सिर्फ खेती पर निर्भर रहकर एक किसान परिवार अपना पूरा जीवन गुजार सके।

सरकार को इस ओर अभी काफ़ी ध्यान देने की ज़रूरत है। और इसके साथ साथ हमें रोजगार के और भी साधन तलाश करने होंगे। ताकि हम एक इज्ज़त की जिंदगी जी सकें। और अपने बच्चों और परिवार को गलत संगत और “घटनाओं” से दूर रख सकें।

By Wasim Ilyas Akram

दोस्तों, मैं एक एग्रीकल्चर ग्रेजुएट हूं और पिछले लगभग 5 सालों से मैं किसान समुदाय के लिए काम कर रहा हूं। मैंने Centre Of Excellence For Vegetables, Gharaunda में नर्सरी एक्सपर्ट के पद पे कार्य किया है और पौध उत्पादन में करीब 5 साल दिए हैं। इसके अलावा हमारा एक YouTube चैनल AAS TV के नाम से है, जिसपे हम लगातार videos की शक्ल में खेती से जुड़ी उन्नत जानकारी साझा करते हैं। आप भी हमारे साथ इस मुहिम में आज़ ही जुड़िए।

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