Introduction:
दोस्तों, कृषि यानी एग्रीकल्चर भारत की अर्थव्यवस्था की रीड की हड्डी है। ये वो सेक्टर है जिसमें हमेशा ग्रोथ देखी जाती है। जब पूरे मुल्क में मंदी का दौर होता है और किसी और सेक्टर से कोई उम्मीद नहीं होती, तब भी एग्रीकल्चर सेक्टर से ग्रोथ की उम्मीद होती है।
जब पूरे मुल्क में लॉकडाउन (Lockdown) लगा हुआ था और चारों तरफ मंदी का माहौल था तब भी एग्रीकल्चर सेक्टर ने अच्छा परफॉर्म किया था। और देश की डूबती हुई अर्थव्यवस्था को एक सहारा दिया था।
The Economic Survey 2022-23 की माने तो भारत में एग्रीकल्चर सेक्टर की जो annual average ग्रोथ रेट होती है, वह करीब 4.5% के आसपास रहती है।
Recent Years Data About Agriculture Growth In India:
और ये पिछले सालों के कुछ आंकड़े हैं, जो बताते हैं कि भारत में एग्रीकल्चर सेक्टर की ग्रोथ रेट किस तरह की रही है:
- 2021-22: 3%
- 2020-21: 3.3%
- 2019-20: 5.5%
- 2018-19: 2.1%
- 2017-18: 6.6%
- 2016-17: 6.8%
ये पिछले 6 सालों का डाटा है जो दरसाता है कि धीरे धीरे एग्रीकल्चर सेक्टर की ग्रोथ रेट भी कम होती जा रही है। जो अपने आप में चिंता की एक बात है। किसान समुदाय के साथ अगर ऐसा ही होता रहा तो यह अपने आप में चिंता की काफी बड़ी बात है। और अगर देश के किस की हालत ऐसी रही तो फिर इसका सीधा असर हमारी थाली पर हमारे घरों पर और हमारी हेल्थ पर देखा जाएगा।
और हाल ही में रिलीज National Statistical Office (NSA) के एक अनुमान की माने तो वित्तीय वर्ष 2024 में य रेट गिर कर 1.8% तक आ जायेगी। और इसके पीछे की 2 बड़ी वजह हैं:
- बीते खरीफ सीजन की कम पैदावार; और
- रबी सीजन में अब तक कम बुवाई।
हालांकि अभी भी एक्सपर्ट्स ये मानते हैं कि ये सिर्फ शुरुआती रुझान हैं जो अनुमानित स्थिति पर आधारित हैं और तस्वीर बदल भी सकती है। और इसका सही अंदाजा फरवरी में जा कर लग पाएगा।
क्या होते हैं खरीफ और रबी सीजन?
जो फसलें मई-जून में बोई जाती हैं, और इनकी कटाई या हार्वेस्टिंग अक्टूबर-नवंबर में की जाती है, खरीफ फसलें कहलाती हैं और इस सीजन को खरीफ सीजन कहा जाता है।
इन फसलों को मानसून या Autumn crops भ कहा जाता है। जैसे: धान, मक्का आदि।
जो फसलें अक्टूबर-नवंबर में बोई जाती हैं, और इनकी कटाई या हार्वेस्टिंग मार्च-अप्रैल में की जाती है, रबी फसलें कहलाती हैं और इस सीजन को रबी सीजन कहा जाता है।
इन फसलों को सर्दियों की फसलें भ कहा जाता है। जैसे: गेंहू, सरसों आदि।
बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकोनॉमिस्ट, मदन सबनाविस ने इसे काफी निराशाजनक बताया है। उनका कहना है कि कॉविड की मार के बाद बड़ी मुश्किल से एग्रीकल्चर सेक्टर की ग्रोथ रेट वापिस पटरी पर लौटी थी। और इस तरह के आंकड़े काफी चिंता जनक हैं।
इसके पीछे एक बड़ी वजह बीते मानसून में काम बारिश भी रही है। ये बारिश पूरे देश भर में एक सार भी नहीं थी। इससे भी खरीफ सीजन के प्रोडक्शन पर काफी असर पड़ा था।
मानसून रहा काफी कमजोर:
खरीफ सीजन में कम बारिश की वजह से सॉइल मॉइश्चर कम रहा जिससे रबी सीजन में भी चना जैसी फसलों की बुआई में कमी दर्ज की गई। यही हाल फॉरेस्ट्री (forestry) और फिशरी (fishry) का रहा। जहां वित्तीय वर्ष 2023 में इनकी ग्रोथ रेट 12.1% थी, इस बार ये घट कर सिर्फ 5.5% रह गई है।
शुरुआती रुझानों में कुछ और डाटा भी सामने आया है। और ये भी कुछ संतोषजनक नहीं है।
- ऐसा अनुमान है कि आने वाले खरीफ सीजन में खरीफ की मुख्य फसल धान की पैदावार में 3.79% तक की गिरावट देखी जा सकती है।
- वर्ष 2022-23 में इसका प्रोडक्शन 110.5 मिलियन टन था जो गिर कर 106.31 मिलियन टन रहने की उम्मीद है।
- इसके अलावा अनुमान ये भी है कि खरीफ सीजन की तमाम फसलों जैसे- मूंग, उड़द, सोयाबीन और गन्ने में भी इसी तरह की गिरावट रहेगी।
- 5 जनवरी 2024 तक, रबी सीजन की फसलों की जो बुआई अब तक हुई है उसमें पिछले साल के मुकाबले 1.24% तक की कमी दर्ज की गई है।
- और इसमें से चने की फसल का एरिया सबसे कम है। और इसकी मुख्य वजह रही soil moisture जो मानसून में कम बारिश की वजह से रहा।
- El Nino के इंपैक्ट की वजह से southwest मानसून 2023 में काफी uneven रहा और जून 2023 से ले कर सितंबर 2023 मानसून में 5.6% की गिरावट रही। और इसी वजह से 2023 के मानसून को “below normal”
मानसून का असर ना सिर्फ मौजूदा मौसम या सीजन में रहता है बल्कि आने वाले सीजन में भी इसका असर रहता है। और भारत के काफी हिस्सों में रबी की फसल की बुआई और पैदावार मानसून में हुई बारिश पर निर्भर करती है।
इस बार किसानों को एक और समस्या का सामना करना पड़ रहा है। सितंबर और दिसंबर में इस साल तापमान काफी ज्यादा रहा और इसका असर गेंहू की फसल पर दिख रहा है।
गेंहू की फसल में छोटे छोटे पौधों पर ही बालियां आनी शुरू हो गई हैं और इन बालियों का साइज भी काफी कम है जिसकी वजह से किसानों की पैदावार पर काफी असर पड़ेगा। हालांकि, जनवरी शुरू होते ही सर्दी का मिजाज कुछ बदला है।
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