Introduction:
दोस्तों, भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की सरकारें जितना अच्छा कार्य और मेहनत यहां के किसान समुदाय के लिए करेगी, ये देश उतनी ही तरक्की करेगा।
और इसी कड़ी में हमारी केंद्र सरकार उन किसानों को एक बड़ा तोहफा देने जा रही है जो दाल की खेती करते हैं।
केंद्रीय कॉपरेशन मिनिस्टर अमित शाह जी ने एक ऑनलाइन बिक्री पोर्टल शुरू किया है जिसे “Tur Dal Portal” नाम दिया गया है।
कैसे कार्य करेगा ये पोर्टल?
जैसे गेंहू के लिए सरकार ने “मेरी फसल मेरा ब्यौरा” पोर्टल बनाया हुआ है, जहां किसान गेंहू की फसल लगाते समय अपनी फसल का पंजीकरण इस पोर्टल पर कराएगा और इससे सरकार को गेंहू का कुल एरिया पता चल जायेगा।
और फिर सरकार किसानों से उनका सारा गेंहू MSP पर खरीदेगी। ठीक इसी तर्ज़ पे इस tur dal portal को बनाया गया है।
यहां भी किसान को दलहनी फसलें लगाते समय इसका ब्यौरा इस पोर्टल पर दर्ज करना पड़ेगा। इससे सरकार के पास कुल क्षेत्र का आंकड़ा आ जाएगा। और फिर सरकार किसानों से उनकी दाल की फसल को MSP पर खरीदेगी।
कौन कौनसी एजेंसियां होंगी शामिल?
इस पोर्टल के अंतर्गत दो एजेंसियां सामने आई हैं जो किसान की फसल को खरीदेंगी।
- Cooperative National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India Ltd (NAFED) and
- National Cooperative Consumers’ Federation of India Limited (NCCF)
सरकार के दिशा विदेशों के अंतर्गत बफर स्टॉक को बनाए रखने के लिए ये दोनों एजेंसियां कार्य करेंगी और ये सुनिचित करेंगी कि किसान का सारा प्रोड्यूस अच्छे भाव में खरीदा जाए। इससे ना सिर्फ किसानों को अच्छे भाव मिलेंगे बल्कि उनका प्रोड्यूस भी समय पर बिक पाएगा।
आखिर क्या होता है Buffer Stock?
बफर स्टॉक एक ऐसा सरप्लस स्टॉक होता है जिसे उस समय स्टोर कर लिया जाता है जब इसकी उपलब्धता मंडी या मार्केट में ज्यादा होती है। इसके बाद इसे सरकारी वेयरहाउसों में स्टोर करके रखा जाता है। और जब इसकी कमी बाजार में होती है तो इसे इस्तेमाल किया जाता है। इसे कभी कभी लोगों में फ्री भी बांटा जाता है।
ये सरकार का अपनी आवाम को एक तोहफा होता है जिसे खास मौकों जैसे चुनावी मौकों पर इस्तेमाल किया जाता है। और कई बार जब सरकार को लगने लगता है कि अब नए सीजन का प्रोड्यूस मंडियों में आने लगा है तो इसे बेच कर इकोनॉमी को फायदा भी पहुंचाया जाता है।
क्या होगा किसान को फायदा?
हमारे देश का काफी हिस्सा ऐसा है, जहां पर दलहन की खेती की जा सकती है पर हमारा किसान समुदाय इस बात से डरता है कि उन्हें उनकी फसल का सही मूल्य नहीं मिलेगा। और ऐसा होता भी है कई बार जो चीज ट्रेंड में नहीं है या जिसकी डिमांड कम है उसका सही मूल्य भी किसानों को नहीं मिल पाता।
इसलिए वह अपने खेत से सही मेहनताना कमाने के चक्कर में दलहन फसलों की बचाए गेहूं या धान लगाना पसंद करता है। ताकि उसको उसकी फसल का सही भाव मिल सके। और उसके परिवार का आने वाले साल तक पेट भरने का जुगाड भी हो सके।
और मंडी या फिर सरकारी दुकानों पर उसकी फसल बिक सके और इसके अलावा इस फसल से होने वाली कमाई से आने वाले साल के लिए उसका घर चल सके।
पर अब यह ऑनलाइन पोर्टल शुरू करके हमारी केंद्र सरकार ने किसान समुदाय को यह आश्वासन दिया है कि अगर वह दलहन फसलों की खेती करता है तो ऑनलाइन रजिस्टर करा कर अपनी फसल का अच्छा भाव ले सकता है। और उसका यह खतरा कि उसकी फसल कहीं बिकेगी या नहीं खत्म हो जाएगा।
उड़द और मूंग के लिए भी बनेगा ऐसा ही पोर्टल।
इस मुहिम को अमलीजामा पहनाने के लिए, कुछ किसानों की फसल की खरीदारी भी की गई है।
जिसके लिए डीबीटी के माध्यम से उनके खाते में डायरेक्ट पेमेंट की गई है और आगे यह कहा गया है कि तूर दाल के अलावा, उड़द और मूंग की दाल के लिए भी इसी तरह के पोर्टल की शुरुआत की जाएगी।
जिससे हमारे देश के किसानों में दलहन फसलों की खेती करने का चलन बढ़े क्योंकि दोस्तों डाल हमारे लिए प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है अगर इसकी खेती बढ़ेगी तो निश्चित रूप से हमारे खाने में प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ेगी। और इसका सीधा असर हमारी हेल्थ पर भी पड़ेगा।
2016 को मनाया गया था International Year Of Pulses:
दालें हमारी डाइट में प्रोटीन का एक अहम सोर्स है। खासतौर से बच्चों और उन लोगों के लिए जो वेजिटेरियन होते हैं। इनके डेली रिक्वायर्ड डाइट में प्रोटीन की कमी को पूरा करने के दालों का होना बेहद जरूरी है। और हमें डेली अपनी डाइट में दिन में कम से कम एक बार दाल जरूर खानी चाहिए।
और दालों के इसी गुण की वजह से और पूरी दुनिया से कुपोषण को दूर करने के लिए The United Nations की General Assembly ने सन 2016 को International Year Of Pulses के रूप में मनाया था।
Nitrogen Fixation में अहम भूमिका निभाती हैं दालें:
हमारे चारों तरफ हवा में लगभग 78% नाइट्रोजन है। और हम अपनी खेती के लिए जिन फर्टिलाइजर्स का इस्तेमाल करते हैं उनमें यूरिया सबसे ज्यादा चर्चित नाइट्रोजन सोर्स है। और इसमें नाइट्रोजन की मात्रा महज 46% है। पर हमारी हवा में हमारे चारों तरफ कुदरत ने 78% नाइट्रोजन रखी है।
पर अभी साइंस इस इस लेवल तक नहीं पहुंच पाई है कि सभी फसलें हवा में मौजूद नाइट्रोजन को डायरेक्ट इस्तेमाल कर सकें। पर legume crops जैसे दालें और बरसीम में कुदरत ने इशारे के तौर पर ये सलाहियत रही है। इनकी जड़ों में गांठ पाई जाती है जिसमें राइजोबियम बैक्टीरिया होते हैं जो हवा की नाइट्रोजन को पहले nitrite में और फिर nitrate में बदल कर फसलों के लिए उपलब्ध कराते हैं।
इसी वजह से जिस खेत में दालों की, बारसीम की या ढैंचा की खेती होती है उस खेत में अगले सीजन में दूसरी फसलों नाइट्रोजन की काम जरूरत पड़ती है। और इसी लिए इन फसलों की पत्तियों को Green Manuring में इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह से दालों की खेती को जितना बढ़ावा मिलेगा हमारी खेती उतनी ही बेहतर होती जायेगी।
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